Sunday, September 9, 2012

धूमिल होती संसद की गरिमा



संसद भवन में सपा और बसपा सांसदों के बीच हुई हाथापाई से भारतीय संसद की गरिमा को गहरी चोट पहुंची है । क्या अब यही एक रास्ता बचा है विवादों को सुलझाने का, अपनी बात मनवाने का। किसी भी देश मे लोकतंत्र की स्थापना का अर्थ ही यह है कि आपसी विवादो को विचार-विमर्श करके सुलझाया जाए ना कि बाहुबल का प्रयोग करके । संसद के सदस्य पूरे देश का प्रतिनिधित्व करते है । उनसे इस तरह के शर्मसार करने वाले व्यवहार की आशा नही की जाती । क्या ये लोग कभी सोचते है कि इसका क्या प्रभाव होगा देश के लोगो पर । अगर कोई व्यक्ति सांसदो के व्यवहार पर टिप्पणी कर दे, तो इससे संसद की छवि खराब हो जाती है लेकिन उनके इस आचरण से संसद की छवि पर कोई प्रभाव नही पडता । अगर अन्ना हजारे जी सांसदो के बारे मे कुछ कह दे तो पूरा का पूरा संसद भवन उनके खिलाफ़ खडा नजर आता है, लेकिन राज्यसभा मे हुई इस हाथापाई से किसी को कोई परेशानी नही है । क्या होगा हमारे देश का भविष्य ??