Saturday, June 16, 2012

धृतराष्ट्र और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह



        किरण बेदी ने  प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तुलना महाभारत के धृतराष्ट्र से की है, जो काफी हद तक उचित भी है. दुर्योधन द्वारा किये गए किसी भी कार्य का धृतराष्ट्र ने पुत्र मोह के कारण विरोध नहीं किया. लेकिन हमारे माननीय प्रधानमंत्री के सामने कौन सा मोह है. क्या प्रधानमंत्री पद का मोह ? जिसके चलते वो सब कुछ आँख मूंदकर देखते रहते है . अगर कोरवौ  ने गलत किया था तो इतिहास आज भी दुर्योधन के साथ साथ  धृतराष्ट्र और भीष्म पितामह को भी उसके लिये दोषी मानता है क्योकि अन्याय करने वाले का साथ देना या उसे निर्विरोध होने देना भी उसमे भागीदारी करने जैसा ही है. प्रधानमंत्री कि स्थिति भी कुछ ऐसी ही है . वो गलत नहीं कर रहे है . लेकिन सभी गलत कार्य उनकी आँखों के सामने ही हो रहे है . इस प्रकार तो वो भी उतने ही दोषी हुए, जितने कि अन्य लोग.प्रधानमंत्री ने ये बयान दिया है की अगर वो दोषी पाए जाते है, तो वो राजनीति से संन्यास ले लेंगे . लेकिन जाँच करेगा कौन ? सीबीआई , जिस से निष्पक्ष जाँच की उम्मीद कम लोगो को ही  है. सीबीआई के पास पहले से ही इतने मामले है कि वो सुलझा नहीं पा रही है . वैसे भी सीबीआई पर गाहे-बगाहे  पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगता ही रहता है.

Friday, June 15, 2012

सत्ता किसके हाथ में



       ज़्यादातर देशो में  सत्ता को सुचारू रूप से चलाने का कार्य राष्ट्रपति में निहित होता है .  हमारे भारतवर्ष में ये अधिकार प्रधानमंत्री को दिए गए है . यहाँ पर सत्ता की बागडोर  प्रधानमंत्री के हाथो में है .  राष्ट्रपति तो मात्र हस्ताक्षर करने के लिये है . इस समय हमारे देश की  राष्ट्रपति  है श्रीमती  प्रतिभा देवी सिंह पाटिल और प्रधानमंत्री है डा० मनमोहन सिंह .  राष्ट्रपति के पास तो अधिकार है ही नही , लेकिन  प्रधानमंत्री  मनमोहन सिंह  क्यों असहाय है . ऐसी कौन सी मजबूरी है की वो हर निर्णय लेने से पहले सोनिया गाँधी की तरफ देखते है . क्या सोनिया गाँधी, जो सिर्फ कांग्रेस की अध्यक्ष है , का कद हमारे   प्रधानमंत्री  से  भी  ऊँचा  है .  यहाँ  तक  की  कांग्रेस के  प्रचार के लिये  लगाए गए पोस्टरों और बैनरों में भी पहले सोनिया गाँधी का और तत्पश्चात  प्रधानमंत्री  मनमोहन सिंह का चित्र छपा होता है .  क्या ये  प्रधानमंत्री की तौहीन नहीं है . क्या सत्ता वास्तविक रूप से सोनिया गाँधी के हाथो में है , एवं   प्रधानमंत्री और   राष्ट्रपति उसके कहे अनुसार कार्य करते है . क्या सिर्फ इसलिए की उन्होंने   डा० मनमोहन सिंह को  प्रधानमंत्री  और  श्रीमती  प्रतिभा पाटिल  को  राष्ट्रपति बनाकर उन पर उपकार किया है . पहले यहाँ ब्रिटेन के लोगो ने राज किया था . अंग्रेज लोग उपर बैठकर हुक्म देते थे और कुछ लोगो को थोड़े से अधिकार देकर  उन्ही के माध्यम से बाकी जनता पर अत्याचार कराते थे . इसी तरीके को अपनाकर अंग्रेजो ने संपूर्ण भारत पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था . क्या एक बार फिर से इतिहास  दोहराया जाने वाला है . पिछली बार अंग्रेजो के गुलाम बने थे , कही इस बार इटालियन लोगो के तो नहीं. जाने अनजाने में कही हम गुलामी की और तो नहीं बढ़ रहे है .

Wednesday, June 13, 2012

हडताल का तरीका




        किसी भी कार्य को अच्छे या बुरे, कानूनी या गैरकानूनी, संवैधानिक या असंवैधानिक  दोनो ही प्रकार से किया जा सकता है, वो कार्य चाहे जो भी हो । अब आप हडताल को ही ले ले । भारत मे आए दिन हडताल होती रहती है । सबसे ज्यादा जो हडताल सुनने मे आती है वो होती है मजदूरों की । मजदूरों की हडताल से सबसे ज्यादा प्रभावित भी गरीब तबके के लोग ही होते है । कभी- कभी तो मजदूरों को ना चाहते हुए भी हडताल का हिस्सा बनना पडता है और फ़ायदा होता है मजदूर संघ के नेताओ का । ज्यादातर  ये नेता लोग ही अपने फ़ायदे के लिए ही मजदूरों को हडताल पर जाने के लिए उकसाते है । 
हमारे देश के लोग विदेशियों की नकल करने मे बहुत ही आगे रहते है, लेकिन सिर्फ़ बुरी बातों की, बुरी आदतों की नकल । यहां तक कि अगर हमारे नेता भी कोई गलत काम करते है तो विदेशियों का उदाहरण देते है । ऐसा नही है कि विदेशों मे हडताल नही होती । हडताल  वहां भी होती है, लेकिन उसका तरीका यहां से भित्र होता है । हडताल  का उद्देश्य होता है अपना विरोध प्रकट करना । विदेशों मे लोग अपना विरोध प्रकट करने के लिए सिर पर काला कपडा लगाकर काम पर आते है । ये एक शांतिपूर्ण , कानूनी एवं संवैधानिक तरीका है । लेकिन भारत मे क्या होता है ? हडताल  के नाम पर सबसे पहले तो काम बंद कर दिया जाता है । उसके बाद विभित्र प्रकार के गैरकानूनी कार्य ,मसलन बंद, सडक जाम आदि मजदूर संघ के नेताओ द्वारा कराए जाते है । ये तरीका किसी भी दृष्टिकोंण से उचित नही है । लेकिन एक तथ्य यह भी है कि अगर यहां पर लोग काला कपडा लगाकर या अन्य किसी शांतिपूर्वक तरीके से काम पर जाते हुए विरोध प्रदर्शित करेंगे, तो हमारा गूंगा-बहरा प्रशासन उनकी बात सुनेगा ही नही । अगर लोग काम कर रहे है, तो प्रशासन की नींद मे कोई खलल नही पडता । मेरा तो आप लोगो से यही आग्रह है कि लोगो हडताल के दौरान अपना विरोध प्रदर्शित करने के लिए कानूनी एवं शांतिपूर्ण तरीका अपनाना चाहिये । एवं साथ ही साथ प्रशासन को भी लोगो के हितों को ध्यान मे रखते हुए उचित कदम उठाना चाहिये । तभी मेरा भारत, हमारा भारत महान बन सकता है ।
        
        जय हिंद, जय भारत । 

Monday, June 4, 2012

क्या राजनीति का स्वरूप बदल रहा है ?



सभी लोगो को अपने पुराने दिन बहुत अच्छे लगते है । इसका कारण यह है कि लोगो के जेहन मे सिर्फ़ अच्छी यादे रहती है । बुरी बातो को वो भुला देना चाहते हैं । लोगो को लगता है कि आज के समय की राजनीति मे सिर्फ़ पैसे वालो के लिये ही जगह है , वो पैसे वाले उद्योगपति या गुंडे कुछ भी हो सकते है । लोग मानते है कि पहले कि राजनीति मे ऐसा नही था । आप अपने मस्तिष्क पर थोडा जोर डालिये और याद कीजिये महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू जी को । आपको क्या लगता है ये लोग किसी गरीब परिवार से थे । बिल्कुल नही । ये दोनो महान व्यक्ति विदेशों में शिक्षा ग्रहण किये हुए थे । आप समझ सकते है कि जिस समय देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी उस समय इन लोगों ने विदेशो मे शिक्षा ग्रहण की थी । आखिर क्यों यही लोग देश की राजनीति मे सक्रिय थे । उस समय भी भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे लोगो को सूली पर लटका दिया जाता था और आज भी कुछ ऐसा ही हो रहा है । फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि आज किसी को खुलेआम फ़ांसी नही दी जाती । पहले कुछ अच्छे नेता भी थे लेकिन आज तो राजनीति का अपराधीकरण हो गया है और अपराधीकरण की राजनीति हो गई है । ये एक चिंता का विषय है कि क्यों आज का युवा वर्ग राजनीति से दूर होता जा रहा है । क्यों अच्छे व्यक्ति राजनीति मे नही आना चाहते । इसकी वजह यही है कि वो लोग राजनीति की आड मे हो रहे अपराधों मे खुद को सम्मिलित नही करना चाहते है ।