किरण बेदी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तुलना महाभारत के धृतराष्ट्र से की है, जो काफी हद तक उचित भी है. दुर्योधन द्वारा किये गए किसी भी कार्य का धृतराष्ट्र ने पुत्र मोह के कारण विरोध नहीं किया. लेकिन हमारे माननीय प्रधानमंत्री के सामने कौन सा मोह है. क्या प्रधानमंत्री पद का मोह ? जिसके चलते वो सब कुछ आँख मूंदकर देखते रहते है . अगर कोरवौ ने गलत किया था तो इतिहास आज भी दुर्योधन के साथ साथ धृतराष्ट्र और भीष्म पितामह को भी उसके लिये दोषी मानता है क्योकि अन्याय करने वाले का साथ देना या उसे निर्विरोध होने देना भी उसमे भागीदारी करने जैसा ही है. प्रधानमंत्री कि स्थिति भी कुछ ऐसी ही है . वो गलत नहीं कर रहे है . लेकिन सभी गलत कार्य उनकी आँखों के सामने ही हो रहे है . इस प्रकार तो वो भी उतने ही दोषी हुए, जितने कि अन्य लोग.प्रधानमंत्री ने ये बयान दिया है की अगर वो दोषी पाए जाते है, तो वो राजनीति से संन्यास ले लेंगे . लेकिन जाँच करेगा कौन ? सीबीआई , जिस से निष्पक्ष जाँच की उम्मीद कम लोगो को ही है. सीबीआई के पास पहले से ही इतने मामले है कि वो सुलझा नहीं पा रही है . वैसे भी सीबीआई पर गाहे-बगाहे पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगता ही रहता है.
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