ज़्यादातर देशो में सत्ता को सुचारू रूप से चलाने का कार्य राष्ट्रपति में निहित होता है . हमारे भारतवर्ष में ये अधिकार प्रधानमंत्री को दिए गए है . यहाँ पर सत्ता की बागडोर प्रधानमंत्री के हाथो में है . राष्ट्रपति तो मात्र हस्ताक्षर करने के लिये है . इस समय हमारे देश की राष्ट्रपति है श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल और प्रधानमंत्री है डा० मनमोहन सिंह . राष्ट्रपति के पास तो अधिकार है ही नही , लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह क्यों असहाय है . ऐसी कौन सी मजबूरी है की वो हर निर्णय लेने से पहले सोनिया गाँधी की तरफ देखते है . क्या सोनिया गाँधी, जो सिर्फ कांग्रेस की अध्यक्ष है , का कद हमारे प्रधानमंत्री से भी ऊँचा है . यहाँ तक की कांग्रेस के प्रचार के लिये लगाए गए पोस्टरों और बैनरों में भी पहले सोनिया गाँधी का और तत्पश्चात प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का चित्र छपा होता है . क्या ये प्रधानमंत्री की तौहीन नहीं है . क्या सत्ता वास्तविक रूप से सोनिया गाँधी के हाथो में है , एवं प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति उसके कहे अनुसार कार्य करते है . क्या सिर्फ इसलिए की उन्होंने डा० मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री और श्रीमती प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति बनाकर उन पर उपकार किया है . पहले यहाँ ब्रिटेन के लोगो ने राज किया था . अंग्रेज लोग उपर बैठकर हुक्म देते थे और कुछ लोगो को थोड़े से अधिकार देकर उन्ही के माध्यम से बाकी जनता पर अत्याचार कराते थे . इसी तरीके को अपनाकर अंग्रेजो ने संपूर्ण भारत पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था . क्या एक बार फिर से इतिहास दोहराया जाने वाला है . पिछली बार अंग्रेजो के गुलाम बने थे , कही इस बार इटालियन लोगो के तो नहीं. जाने अनजाने में कही हम गुलामी की और तो नहीं बढ़ रहे है .
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